अपने छात्रजीवन में मुझे अनेक अध्यापकों से स्नेह तथा मार्गदर्शन मिला है, लेकिन इन सबमे सुरेन्द्र शर्मा मेरे प्रिय अध्यापक रहे है ! सचमुच उनके जेसा अपार ज्ञान, असीम स्नेह और प्रभावशाली व्यक्तित्व बहुत कम अध्यापकों में मेने पाया है !
शर्माजी का कद लम्बा और रंग गोरा है ! उनकी आँखे चमकीली है ! उनकी आवाज गंभीर, स्पष्ट और प्रभावशाली है ! उनका शरीर फुर्तीला और स्वस्थ है ! वे हमेशा तेज चल से चलते है ! वे प्राय: सफ़ेद धोती कुरता अथवा सफारी सूट पहनते है !
आज के कई अध्यापक अपने पद को केवल अर्थप्राप्ति का साधन मानते है और विद्यार्थीयों के सामने किताबों के पन्ने पलट देने को ही पढाना समझते है ! मनो सच्चे ज्ञान-दान और चरित-निर्माण से उन्हें कोई मतलब ही न हो ! लेकिन शर्माजी के बारे में यह बात नहीं है ! वे अध्यापक पद के गौरव और उसकी जिम्मेदारी को भली-भांति समझते है और अपने कर्तव्यों का पूर्ण रूप से निर्वाह करते है !
शर्माजी विद्वान व्यक्ति है ! उनका ज्ञानभंडार अथाह है ! विज्ञानं, गणित और समाजशास्त्र में भी उनकी रूचि कम नहीं है ! अंग्रजी व्याकरण वे इस प्रकार समझाते है की साडी बातें कक्षा में ही कंठस्त हो जाती है हिंदी भाषा में भी उनका पूर्ण आधिकार है ! कोई भी विद्यार्थी अपनी शंका, बिना किसी भय और हिचकिचाहट के उनके सामने रख सकता है और उसका उचित समाधान प्राप्त कर सकता है !
शर्माजी खेल-कूद में भी बहुत रूचि लेते है ! वे विद्याथियों के साथ खेल में भाग लेते है ! नाटक, चर्चा-गोष्टी, चित्र-प्रतियोगिता, निबंध-प्रतियोगिता आदि में वे विद्याथियों का मार्गदर्शन करते है और उन्हें समय-समय पर विविध क्षेत्रोँ में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते है ! हमारे विद्यालय का ऐसा कई कार्यक्रम नहीं जिसमे शर्माजी का योगदान न हो !
शर्माजी विद्यालय को एक परिवार मानते है ! सभी विद्याथियों को उनका प्यार मिलता है ! उन्हें क्रुध्द होते कभी किसी ने नहीं देखा, फिर भी अनुशासन के वे बहुत हिमायती है ! पढाई में कमजोर छात्रों पर उनकी ममतामयी द्रष्टि रहती है ! परीक्षा में अनुत्तीर्ण छात्रों कोण वे स्नेह से ढ़ाढ़स बंधाते है ! सचमुच, सभी छात्र उनमे एक पिता के वात्सल्य का दर्शन करते है !
शर्माजी निरभिमानी है ! घमंड तो उन्हें छु तक नहीं गया है ! उनके चेहरे से सदा प्रसन्नता और आत्मीयता झलकती है ! उनके रहन-सहन और वेशभूषा से सादकी प्रकट होती है ! झूठ, लोभ रिशवत, ईर्ष्या आदि बुराईयों से तो वे कोसों दूर है ! यदि ऐसे शर्माजी मेरे प्रिय आध्यापक हों, तो इसमें आस्चर्य ही क्या !