संसार में किसी भी व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का अपनी स्वतंत्रता तथा स्वाभिमान बनाए रखने के लिए आत्मनिर्भर या स्वावलंबी होना उसकी पहली शर्त है| स्वावलंबन के अभाव में व्यक्ति से लेकर राष्ट्र तक कही भी कोई सम्मान प्राप्त नहीं कर सकत| स्वावलम्बन का महत्त्व समझनेवाला व्यक्ति ही स्वाधीन रहकर दुःख-सुख का वास्तविक अर्थ, मान एवम् मूल्य या महत्त्व भी समझ सकता है| प्रकृति मनुष्य को कार्य करने के लिए हाथ, चलने के लिए पैर, सोचने के लिए मस्तिष्क और अनुभव करने के लिए ह्रदय आदि प्रदान किए है | उन सबका एक ही प्रयोजन है कि मनुष्य आत्मनिर्भर होकर पहले अपने पर सासन करना सीखे फिर योग्य प्राणियों पर|
मनुष्य एक मन-मस्तिश्क्वाला प्राणी है| इसी कारण उसे समझदार माना जाता है पर कभी-कभी वह भूल जाता है कि मेरी प्रगति एवं विकास का अर्थ, मेरी आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी होने का अर्थ केवल मेरा ऐसा हो जाना ही नहीं है, उस समूचे जीवन और समाज का भी होना चाहिए जिसका मैं एक सम्पुष्ट अंग हूँ|
घर-बाहर सभी जगह समाज मानवीय सम्मान पाने के लिए व्यक्ति का कार्यरत या स्वावलम्बी होना बहुत आवश्यक है| आज के जो उच्च एवं सम्पन्न घराने माने जाते है, उनके बारे में सुना जाता है कि पूर्वज घर से केवल एक लोटा लेकर निकला था और किसी का मात्र बीस-तीस रुपए लेकर| बाहर पहुँच कर उन्होंने किसी भी प्रकार का मेहनत मशक्कत का कार्य करनेसे परहेज नहीं किया| अपने अनवरत अध्यवसाय के बल पर आगे बढ़ते गए और एक दिन बड़े-बड़े उद्योग धंधों के एकदम स्वामी बन बैठे| उनके कारण आज अन्य सैकड़ों-हजारों परिवार भी आत्मनिर्भर जीवन जी रहें हैं| इस प्रकार की कहानियों में कोई अतिश्योक्ति नहीं है, जीवन का अनुभव सत्य छिपा है परिश्रम व्यक्ति हो या देश, उसे आगे बढ़ने से कभी कोई नहीं रोक सकता| जो परिश्रम करके आगे बढ़ता है वह सबसे सम्मान का भी अधिकार बन जाया सकता है, इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं है|बहुत पहले जापान के एक अध्यवसायी दार्शनिक ने कहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब हम अपने हाथों की उंगलियों के बल पर सारे संसार को जीत लेगे और उन्होंने वास्तव में जीतकर दिखा दिया| संसार का आत्मनिर्भर होने का रास्ता दिखा दिया|
मनुष्य एक मन-मस्तिश्क्वाला प्राणी है| इसी कारण उसे समझदार माना जाता है पर कभी-कभी वह भूल जाता है कि मेरी प्रगति एवं विकास का अर्थ, मेरी आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी होने का अर्थ केवल मेरा ऐसा हो जाना ही नहीं है, उस समूचे जीवन और समाज का भी होना चाहिए जिसका मैं एक सम्पुष्ट अंग हूँ|
घर-बाहर सभी जगह समाज मानवीय सम्मान पाने के लिए व्यक्ति का कार्यरत या स्वावलम्बी होना बहुत आवश्यक है| आज के जो उच्च एवं सम्पन्न घराने माने जाते है, उनके बारे में सुना जाता है कि पूर्वज घर से केवल एक लोटा लेकर निकला था और किसी का मात्र बीस-तीस रुपए लेकर| बाहर पहुँच कर उन्होंने किसी भी प्रकार का मेहनत मशक्कत का कार्य करनेसे परहेज नहीं किया| अपने अनवरत अध्यवसाय के बल पर आगे बढ़ते गए और एक दिन बड़े-बड़े उद्योग धंधों के एकदम स्वामी बन बैठे| उनके कारण आज अन्य सैकड़ों-हजारों परिवार भी आत्मनिर्भर जीवन जी रहें हैं| इस प्रकार की कहानियों में कोई अतिश्योक्ति नहीं है, जीवन का अनुभव सत्य छिपा है परिश्रम व्यक्ति हो या देश, उसे आगे बढ़ने से कभी कोई नहीं रोक सकता| जो परिश्रम करके आगे बढ़ता है वह सबसे सम्मान का भी अधिकार बन जाया सकता है, इस बात में तनिक भी सन्देह नहीं है|बहुत पहले जापान के एक अध्यवसायी दार्शनिक ने कहा था कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब हम अपने हाथों की उंगलियों के बल पर सारे संसार को जीत लेगे और उन्होंने वास्तव में जीतकर दिखा दिया| संसार का आत्मनिर्भर होने का रास्ता दिखा दिया|