बचपन से मुझे प्रवास का शौख है ! यूँ तो आज तक
मेने कई प्रवास किये हैं, पर प्रकर्तिधाम माथेरान का प्रवास मेरे लिए अविस्मरणीय
बन गया है !
पिछली दिवाली की छुट्टीयों में हम कुछ सहपाठी माथेरान
गए थे ! मुंबई के सी. एस. टी. स्टेशन से रेल गाड़ी में बेठकर हम नेरल पहुँचे ! वहाँ
जलपान करके हम खिलोने जैसी ‘मिनी’ रेलगाड़ी में सवार हुए ! मखमल-सी मुलायम हरि
व्रक्ष और सघन घाटियों की शोभा देखते हुए हम माथेरान पहुंचे ! वहाँ हम ‘मेघदूत’
होटल में ठहरे !
माथेरान का वातावरण मोहक और स्फूर्तिदायक था ! लाल-लाल
मटियाले रास्तें और घनी हरियाली ! भरी दोपहर में भी वहा ठंडी हवा चली है ! सुबह और
शाम को हम घूम कर हमने अनेक प्राकर्तिक द्रश्य देखे ! प्राकर्तिक द्रश्य की
सुन्दरता अनोखी थी ! इनमे से कुछ द्रश्य हमें बहुत ही अच्छे लगे ! ‘एको पॉइंट’ (प्रतिध्वनि बिंदु) पर हमने जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी अनेक प्रतिध्वनि सुनी ! एक
दिन शाम को हमने सूर्यास्त बिंदु पर डूबते हुए सूर्य का अद्भुत् द्रश्य देखा !
हमने शारलोट तलब की सुन्दरता भी देखी !
हमने घुडसवारी और रिक्शा में बेठने का मजा भी लिया ! हमने अपने कैमरों से
कई तस्वीरें भी खिचीं ! हम दिनभर घूमते रहते थे, पर कभी हमें थकान का अनुभव नहीं
हुआ !
माथेरान के छोटे-से बाजार में दिनभर यात्रियों का
मेला लगा रहता है ! जुटे-चप्पल, मधु, चिक्की, फूलों के गुलदस्ते और लकड़ी की
रंगबिरंगी छड़ियाँ आदि चीजे यहाँ खेब बिकती हैं ! हमने भी चिक्की, मधु और फूलों के
गुलदस्ते ख़रीदे !
माथेरान में चार दिन चार पल की तरह बीत गए ! हम
वहाँ से लौट आए, पर वहाँ के मनोहर द्रश्य आज भी मेरी आखों के सामने घूम रहे है !