April 28, 2013

मेरी समरणीय यात्रा | हिंदी निबंध


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बचपन से मुझे प्रवास का शौख है ! यूँ तो आज तक मेने कई प्रवास किये हैं, पर प्रकर्तिधाम माथेरान का प्रवास मेरे लिए अविस्मरणीय बन गया है !

पिछली दिवाली की छुट्टीयों में हम कुछ सहपाठी माथेरान गए थे ! मुंबई के सी. एस. टी. स्टेशन से रेल गाड़ी में बेठकर हम नेरल पहुँचे ! वहाँ जलपान करके हम खिलोने जैसी ‘मिनी’ रेलगाड़ी में सवार हुए ! मखमल-सी मुलायम हरि व्रक्ष और सघन घाटियों की शोभा देखते हुए हम माथेरान पहुंचे ! वहाँ हम ‘मेघदूत’ होटल में ठहरे !

माथेरान का वातावरण मोहक और स्फूर्तिदायक था ! लाल-लाल मटियाले रास्तें और घनी हरियाली ! भरी दोपहर में भी वहा ठंडी हवा चली है ! सुबह और शाम को हम घूम कर हमने अनेक प्राकर्तिक द्रश्य देखे ! प्राकर्तिक द्रश्य की सुन्दरता अनोखी थी ! इनमे से कुछ द्रश्य हमें बहुत ही अच्छे लगे ! ‘एको पॉइंट’ (प्रतिध्वनि बिंदु) पर हमने जोर-जोर से चिल्लाकर अपनी अनेक प्रतिध्वनि सुनी ! एक दिन शाम को हमने सूर्यास्त बिंदु पर डूबते हुए सूर्य का अद्भुत् द्रश्य देखा ! हमने शारलोट तलब की सुन्दरता भी देखी !  हमने घुडसवारी और रिक्शा में बेठने का मजा भी लिया ! हमने अपने कैमरों से कई तस्वीरें भी खिचीं ! हम दिनभर घूमते रहते थे, पर कभी हमें थकान का अनुभव नहीं हुआ !

माथेरान के छोटे-से बाजार में दिनभर यात्रियों का मेला लगा रहता है ! जुटे-चप्पल, मधु, चिक्की, फूलों के गुलदस्ते और लकड़ी की रंगबिरंगी छड़ियाँ आदि चीजे यहाँ खेब बिकती हैं ! हमने भी चिक्की, मधु और फूलों के गुलदस्ते ख़रीदे !
 
माथेरान में चार दिन चार पल की तरह बीत गए ! हम वहाँ से लौट आए, पर वहाँ के मनोहर द्रश्य आज भी मेरी आखों के सामने घूम रहे है !