November 27, 2013

बस-विराम पर आधा घंण्टा | हिंदी निबंध

शहरों में देहात की अपेक्षा यातायात की सुविधा अधिक है| लोकल ट्रेन, बस, ट्राम, घोड़ागाड़ी, रिक्शा, टैक्शी अनेक सवारियाँ मिलती हैं| इसमें से बस यात्रा करना लोग अधिक पसन्द करते हैं, क्योंकि इसमें भाड़ा कम लगता है| गन्तव्य तक पहुँचा देती है| घर से रेलवे दूर है | ट्राम हमारे शहर से खत्म कर दी गई है| रिक्शा की अनुमति नहीं है| घोड़ागाड़ी और टैक्शी महँगी पड़ती है| इसलिए बस-विराम पर ही प्रतीक्षा करना मैंने ठीक समझा|

बरसात में बसें प्राय: देरी से मिलती हैं, विशेषकर कार्यालयों के समय| कुछ बसें खराब भी होती हैं| जनसंख्या बढ़ने से भीड़ अधिक होने लगी है| फिर भी आम तौर पर १०-१५ मिनात्न्प्र बस मिल जाती है| किन्तु छुट्टी के दिन आधा घंण्टा तक बस की प्रतीक्षा करनी पड़ी| कतार में लगभग सौ आदमी खड़े थे| मेरा चालीसवाँ नम्बर था| बस आती, भरी हुई, विराम पर रूकती भी तो ३-४ आदमियों को लेकर चल देती| बस आते ही लोग उस पर टूट पड़ते, कन्डक्टर चिल्लाता रहता पहले उतर जाने दीजिए, फिर चढ़िए अब जगह नहीं है, पीछे की बस से आइये पर कोई सुनता नहीं| तब कन्डक्टर दोनों हाथों से दरवाजा रोक लेता है और बलपूर्वक किसी को चढ़ने नहीं देता है| झगड़ा, परेशानी से बचने के लिए बस-विराम पर खड़ी ही नहीं होती| उतरने वालों को कुछ दूर पहले या बाद उतर देती|

बस की राह देखते-देखते लोग थक जाते हैं| कोई अखबार पढता, कोई बीड़ी या सिगरेट सुलगाता है| कुछ लोग विभिन्न विषयों पर टिका-टिप्पणी करते हैं| कोई राजनीति की आलोचना करता हैं, तो कोई आधुनिक शिक्षा को कोसता है, तो कोई महँगाई का रोना रोता है| कुछ सट्टे की भी बातें करते हैं|

हमारी परीक्षा के २८ मिनट बीत गए तब कही जाकर भाग्योदय हुआ| बस में जगह है, अनुमान कर अनेक लोग दौड़ पड़े| धक्का-मुक्की होने लगी| स्त्री-बच्चे और बूढ़े नहीं चढ़ सके| मुझे भी खड़े रहने की जगह मिल गई| टिकट के लिए जेब में हाथ डाला| वह कटी थी| गनीमत यह है कि जेब सुरक्षित थी अन्यथा सौभाग्य दुर्भाग्य में बदल जाता, बस से उतर जाना पड़ता|

बस-विराम पर इतनी असुविधा हमें पहली बार हुई , निश्चय किया कि अब बस से यात्रा नहीं करूँगा| परन्तु आर्थिक विवशता ने उसी दिन प्रतिज्ञा तोड़ दी| विवश होकर बस पुन: सहारा लेना पड़ा|